उपान्त्य (Penultimate) - मेरे अंत से ठीक पहले वाला प्यार हो तुम …
by Rebecca Hazelton
मुझे बिताने हैं कई,
पर नहीं ‘सारे’ साल तुम्हारे साथ।
जब ठसक के मैं बोलूँ कि, आँखें हरी हैं तुम्हारी।
वो आँखें जो स्लेटी के अलावा कभी कुछ रही ही नहीं।
जब सेक्स इतना मुकम्मल हो, कि नीयत ही ना भरे।
पर उतना बेहतरीन नहीं जितना हमारे घर के बग़ल के घर की दीवारों से छन के आती आवाज़ों में होता है।
जब छोटी छोटी चीज़ों में प्यार शुमार होगा।
जैसे बिस्तर से मेरा गीला तौलिया उठा लेना,
और फिर एक दिन उठाना बंद कर देना, हमेशा के लिए।
जब मैं उतना अच्छा ना लगूँ,
जितना मैं लगता था तुम्हें, तुमसे मिलने से पहले तक।
और भरोसा जो पहले मुझमें था बेइंतहाँ,
अब मेरे बेतरतीब गिरते बालों पर भी ना हो।
जब तुम मेरे लिये मेरी मनपसंद वाईन लेके आओगी,
और फिर टोकोगी भी, कि कितना पीने लगे हो तुम।
उस उपान्त्य में भी कुछ तो है,
मुझे वहीं उसी जगह थामे हुए है।
शायद, तुम्हारी, भूरी आँखें ?
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"You Are the Penultimate Love of My Life"
by Rebecca Hazelton
I want to spend a lot but not all of my years with you.
I will remember your eyes as green when they were gray.
Sex will be good but next door's will sound better.
There will be small things. I will pick up your damp towel from the bed, and then I won't.
I won't be as hot as I was when I wasn't yours
and your hairline now so untrustworthy.
You will bring me wine and notice how much I drink.
But there's something holding me here, for now,
Like your eyes, which I suppose are brown, after all.
—
(I took extreme liberty to translate in Hindi, few excerpts from the captioned poem as it felt very intriguing and different. Any translation loss is purely due to my lack of skill and craft)