होने लगी है जिस्म में जुम्बिश तो देखिये ।
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिये ॥
गूंगे निकल पड़े हैं,जुबान की तलाश में ।
सरकार के खिलाफ ये साजिश तो देखिये ॥
बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन ।
सूखा मचा रही ये बारिश तो देखिये ॥
उनकी अपील है की उन्हें हम मदद करें ।
चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिये ॥
जिसने नज़र उठाई वही शख्स गम हुआ ।
इस जिस्म के तिलस्म की बंदिश तो देखिये ॥
********************************************************
कहीं पे धूप की चादर बिछाकर बैठ गए,
कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए॥
जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा,
बहुत से लोग वहीं छ्टपटाके बैठ गए ॥
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को,
सब अपनी-अपनी हथेली जलाके बैठ गए ॥
दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो,
तमाशबीन दुकाने लगाके बैठ गए ॥
लहू-लुहान नज़रों का ज़िक्र आया तो,
शरीफ लोग उठे दूर जाके बैठ गए ॥
ये सोचकर की दरख्तों में छाँव होती है,
यहाँ बबूल के साये में आके बैठ गए॥
********************************************************
इस परकटे परिंदे की कोशिश तो देखिये ॥
गूंगे निकल पड़े हैं,जुबान की तलाश में ।
सरकार के खिलाफ ये साजिश तो देखिये ॥
बरसात आ गई तो दरकने लगी ज़मीन ।
सूखा मचा रही ये बारिश तो देखिये ॥
उनकी अपील है की उन्हें हम मदद करें ।
चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिये ॥
जिसने नज़र उठाई वही शख्स गम हुआ ।
इस जिस्म के तिलस्म की बंदिश तो देखिये ॥
********************************************************
कहीं पे धूप की चादर बिछाकर बैठ गए,
कहीं पे शाम सिरहाने लगाके बैठ गए॥
जले जो रेत में तलुवे तो हमने ये देखा,
बहुत से लोग वहीं छ्टपटाके बैठ गए ॥
खड़े हुए थे अलावों की आंच लेने को,
सब अपनी-अपनी हथेली जलाके बैठ गए ॥
दुकानदार तो मेले में लुट गए यारो,
तमाशबीन दुकाने लगाके बैठ गए ॥
लहू-लुहान नज़रों का ज़िक्र आया तो,
शरीफ लोग उठे दूर जाके बैठ गए ॥
ये सोचकर की दरख्तों में छाँव होती है,
यहाँ बबूल के साये में आके बैठ गए॥
********************************************************
No comments:
Post a Comment