Wednesday, March 16, 2011

होठों से हँसते होंगे देव वो आँखों से मुस्काती है ...


चंद अनकहे लफ्जों में कहकर, या लम्बे अल्फाजों में छुपकर,
चार कदम यूं पीछे हटकर, कुछ लम्बी साँसों में बसकर,
वो बंद नयनों की सुप्त छाँव में,
सुप्रभात सी मीठी अंगडाई ले अलसाती है,
होठों से हँसते होंगे देव,वो आँखों से मुस्काती है ...

बात बात पर होंठ दबाकर, बिन -बात मुझको धमकाकर,
कड़ी धूप से आँख मिलाकर, या मंद छाँव में  भी सकुचा कर,
छोटी-छोटी अठखेली से,
मुझको स्तब्ध कर जाती है ...
होठों से हँसते होंगे देव वो आँखों से मुस्काती है ...

बस मस्तक की रेखा का खेल है सारा,
कभी इक पल को मानुष तरसे कभी जग है तुम्हारा,
मुस्काकर हाथ फिर हौले से माथे पर रख ,
वो जैसे हर वासुकी-चिन्ह को मिटाती है,
होठों से हँसते होंगे देव वो आँखों से मुस्काती है ...

3 comments:

  1. This is really good ! Didn't know you are so good at it ....

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