Monday, August 29, 2011

रामलीला मैदान में बैठी थी संसद, और संसद में रामलीला...


६४ साल का शिथिल युवक ये, घुटनों के बल चलता है ..
बीच-बीच में सहम-सहज के, उखड़ी सांसें भरता है...
दोनों पक्ष दानव हैं जिसके, ऐसा सागर मंथन है..
सुविचार नहीं बस चीत्कार है, कैसा दृश्य विहंगम है ...
वो कहते हैं प्रगतीशील भारत है भाई, मुझको जाने क्यूँ लगता बस दंभ गर्वीला..
रामलीला मैदान में बैठी थी संसद, और संसद में रामलीला...

१२ दिनका अनशन हो या, १५४ सालकी अनवरत लड़ाई ...
थका है वृद्ध, थका है बचपन, अब तो थक सी गयी है तरूणाई ...
महंगाई है चिरायु प्रियतमा, प्रियतम भ्रष्टाचार अजर-अमर...
देश है मेरा एक चिर-विधवा, न ससुराल में ठौर ना अपना पीहर ..
स्वेद-अश्रु-रक्त से लथपथ, जो था कभी सुनहरा - सजीला...
रामलीला मैदान में बैठी थी संसद, और संसद में रामलीला...

चाहिए परिवर्तन की आंधी, तो पहले झांको स्वयं के भीतर...
ये युद्ध नहीं है शत्रु से, ये तो है अन्तःसमर ...
खुद के अन्दर की आंधी को रुख दो बाहर के नीरव में...
कोलाहल भी मधुर है होता, भेदों इस व्यवस्था को अपने कोलाहल से ...
क्रांति का उद्गम है अंतर , और ध्येय एक देश, सुदृढ़ , सजीला ..
रामलीला मैदान में बैठी थी संसद, और संसद में रामलीला...

(नीरव से कोलाहल तक का सफ़र, अथक, अनवरत  ...)

2 comments:

  1. you write beautiful hindi and the feelings are conveyed...and its a topic, every Indian relates to..loved it.

    ReplyDelete