Saturday, January 05, 2008

क्यों अलग मैं क्यों अलग वो॥

मेरा यौवन है अलग, क्यूंकि मैं वरदान था
एक शिक्षित एवं प्रतिष्ठित, कुल की मैं संतान था

प्राप्त कर सका जो भी चाहा,कुछ संबल कुछ ज्ञान से
माता पिता के आशीर्वाद से, पूर्वजों के संज्ञान से

पर क्या अशिक्षित कुल से होना,एक जिंदगी के लिए अभिशाप है
मेरी झोली मैं है खुशियाँ ,उसकी में संताप है।।

पूर्वजों के ह्रदय सुना है,निश्छल - निकपट होते हैं
फिर क्यों उसके और मेरे,यूं भाग्य अलग-अलग होते हैं

कैसे आएगी हे ईश क्रांति,इस विभाजित संसार में
घिसीपिटी सी आदमियत से,टूटे हुए हर परिवार में

मेरी क्रांति अब मुझसे शुरू है,और शायद मुझ में ही सब विकार है
इस रोगी भाग्य एवं जग से,अब शुरू मेरा प्रतिकार है

6 comments:

  1. Baat to sahi hain....hope u stand up to ur word too....:)

    A small request...please have all your poems documented at one place somewhere...if you dont want them, u may gift them to me....I might earn millions later on..:)...

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  2. your poem is thought evoking; an expression of defiance towards all inequality plaguing this humanity. such thoughts have potential to create awareness in others to move towards a better world.

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  3. Me and Kaushik told you so many times. It seems you finally realized. That's why I liked this part most ;)

    मेरी क्रांति अब मुझसे शुरू है,और शायद मुझ में ही सब विकार है।
    इस रोगी भाग्य एवं जग से,अब शुरू मेरा प्रतिकार है॥

    Jokes apart, Really nice one I liked it.

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  4. There is definitely something that strikes a chord between your and my way of thinking and looking at this world. I sometimes do get too sad though, dont know if you share that emotion quite often too

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  5. @Priyanka - Yes indeed I do ... A bit too much at times ..

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