Sunday, September 18, 2011

मुंबई शहर में बस एक गम है , हर घर में एक कमरा कम है ...

मुंबई शहर में बस एक गम है , हर घर में एक कमरा कम है...  
(This particular line is inspired from here

मुंबई शहर में बस एक गम है , हर घर में एक कमरा कम है...
तीन पत्ती के खेल जैसी, खुद पर दाँव खेलती जिंदगी,
घर-सफ़र-काम की बिसात में उलझा है हर आदमी,
उधार बनिस्पत साँसों में यहाँ पर, सूद ज्यादा असल कम है ..
मुंबई शहर में बस एक गम है , हर घर में एक कमरा कम है...

व्यक्तिगत प्रलोभनों से सरोकार बस सबको है यहाँ,
स्व-विवेक है बिन मोल , महत्वाकान्छाओं का कारोबार यहाँ,
मिटटी के मोल मिल भी जाए एक बार को जिंदगी,
मोल दे के भी न मिले , सच्चे पतित जज़बात यहाँ,
बिखरे सपने, थके इरादे, आँखें सूखीं और दिल नम हैं... 
मुंबई शहर में बस एक गम है , हर घर में एक कमरा कम है...
 
संस्कृति के शहर में हर आदमी है अजनबी,
जाने यहाँ क्यं आगे नहीं, ऊपर बढ़ना है लाजमी,
अपनी ख़ुशी खुद तक रखने को नाम देते हैं सादगी,
पैसा खुदा और बस इस खुदा की करते हैं सब बंदगी,
जाने यहाँ की मृगत्रिष्णा है, या बस मेरा मतिभ्रम है ...
मुंबई शहर में बस एक गम है , हर घर में एक कमरा कम है...

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