Sunday, September 19, 2010

आखिरी गुहार !!! (Babri Masjid, Terrorism and Beyond)

कहते हैं सब सर्वशक्तिमान अन्तर्यामी भगवान् हो तुम,
हर कण में, हर क्षण में, हर ह्रदय मैं विद्यमान हो तुम,
निवासित हो गर सृष्टि की हर एक रचना में,
फिर क्यूँ हमारे आत्मबल के क्षय से अनजान हो तुम ...

अश्रु - धारा की जगह रक्त झरता है हर कोर से,
पाप-छल का साम्राज्य है पुण्य - रुपी आकाश पे,
ये पावन नदियाँ अब जल नहीं कपट बहाया करती हैं,
और किरणें भी प्रकाश नहीं गहनतम तम बिखराया करती हैं,
नहीं कर सकते प्रदान नवालोक , कहलाते क्यूँ महान हो तुम ...
निवासित हो गर ...........

दिक्पाल दिशाओं के थर्राते हैं पाप के अंतर्नाद से,
रो उठते हैं पाषाण भी मानव ह्रदय के विषाद से,
छलनी करके रख देते हैं, अपनों के ही प्रपंच बाण,
असत्य के हाथों मैं रहती न्याय की सर्वोच्च कृपान,
गर नहीं सत्य के पाल, कहलाते क्यूँ सत्यवान हो तुम,
निवासित हो गर ...........

परीक्षा ना लो सब्र की हमारी, ' मनु ' से पाया है हमने धीर,
है संबल इतना कि सह जाएँ , हर विपदा के तीश्नतम तीर,
ला सकते हैं भूडोल, अपनी एक हुंकार से,
भेद सकते हैं पर्वत का सीना अपनी सत्य कटार से
मत भूलो रह चुके हो, इसी कुल कि संतान तुम,
निवासित हो गर ...........

(और क्रान्ति का जन्म हुआ )

~ मनु

Monday, February 15, 2010

Re-posting - On the occassion of "The V-Day"

Just felt like re-posting this March - '07 entry again on V-Day ;-)


ये इश्क है ऐ-यार या फिर उम्र का खुमार है,


मीलों तक बिखरी हुई एक धुन्ध है गुबार है,


सभी के दिल में शंख से ध्वनित हैं जैसे जीत के,


घंटियों की ताल है यूं मंदिरों के गीत से.


है प्रेम कि ये विडंबना या ज़िन्दगी का उपहार है.


ये इश्क है ऐ-यार………………………………..




इस शहर में प्रेम की परिभाषा ही कुछ और है,


ह्रदय की गुन्जन नहीं है ये बस भ्रमरों की दौड है,


गिनतियों में,तोह्फ़ो में, चलता दिलों का कारोबार


ईश्वर की दी इस दवा से मानव स्वयं ही है बीमार


पावन गुणों से इस रोग के मुझे कब इंकार है,


ये इश्क है ऐ-यार………………………………..




वो है मेरा यार और मेरा रहेगा उम्र भर,


देखो तो मेरा प्यार ज़िंदा रहेगा अनश्वर,


दौडेगा खून बन कर रगों में सांसों में करेगा रैन-बसर,


ये ही है वो जिसके लिये छोडी है मैने हर डगर,


कौन ! ओह वो पहले वाला? वो तो बस बेकार है,


ये इश्क है ऐ-यार………………………………..




दोस्ती के रिश्ते यूं बदल रहे हैं रंग क्यूं,


बदल रहे हैं आरजू,बदल रहे हैं मीत क्यूं,


बदल रहे हैं दिल सही,बदल रहे इंसान क्यूं,


बदल रहे हैं हार के और जीत के पैमान क्यूं,


रुकी-सधी सी जिंदगी क्या कोई अपमान है,


ये इश्क है ऐ-यार………………………………..




दोस्ती और प्रेम को अलग-अलग रखता हूं मैं,


दोनों के ही भाव को शत-शत नमन करता हूं मैं,


भ्रमित हूं बस इस चलन से, कि प्रेम ही है सर्वोपरि,


मेरे लिये तो दोस्ती हर नाते-बंधन से बडी ,


तभी दोस्तों से मुझे असीमित-अतुलनीय प्यार है.


ये इश्क है ऐ-यार………………………………..


- मनु