इस रात की सुबह नहीं,
इसमें कोई शुबह नहीं,
मैं ढूँढता हूँ उस मुक़ाम को,
जिसमें कोई गिरह नहीं,
इस रात की सुबह नहीं।
इसमें कोई शुबह नहीं,
मैं ढूँढता हूँ उस मुक़ाम को,
जिसमें कोई गिरह नहीं,
इस रात की सुबह नहीं।
सूरज है मध्यम तेज आज,
पवन है सुप्त सेज आज,
रास्ते भी हैं भरे,
देव पीड़ा को हरें,
क्रांति की है निशब्द आहट,
पर मुझे कोई खबर नहीं,
इस रात की सुबह नहीं।
मैं हूँ रश्मि पर सवार,
हर दिक् में कर रहा स्वछंद विहार,
है मन ये मेरा सारथी,
हृदय विनम्र प्रार्थी,
ना रोक है ना टोक है,
ना भय है ना किंचित् शोक है,
ना ग़लत है ना कुछ सही,
इस रात की सुबह नहीं।
मैं स्वेद रक्त से चूर हूँ,
विश्वास से भरपूर हूँ,
भुजा में अतुल्य दंभ है,
भृकुटि में ना कोई प्रतिष्टम्भ है,
ये महारण का है पाञ्चजन्य,
कोई व्यक्तिगत आह्वान नहीं,
इस रात की सुबह नहीं।
इस रात की सुबह नहीं …
—
#IcarusSays
बहुत खूब लिखा है।
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