क्या नयी ये जिंदगी है,या महज एक एहसास है।
दूर रहा मैं जिन भावों से,आज ह्रदय में उनका वास है॥
क्या नयी ये.....
दूर-दूर ही रहता था मैं,जिन अचिन्हे सपनो से।
उन्मुक्त विचरता था जग में दम्भित,ना सरोकार था बंधनों से॥
फिर आज ह्रदय का रोम-रोम क्यों,
बन गया किसी का यूँ दास है॥
क्या नयी ये.....
खनक हँसी की जिसकी मेरे,उर में घुल घुल जाती है।
अधरों से हँसते होंगे देव,वो आँखों से मुस्काती है॥
जिसकी बोली हर बात क्यों जाने,
मेरी सबसे प्यारी याद है॥
क्या नयी ये.....
कभी मासूम,कभी चंचल कभी,बातों-बातों में शर्माती है।
तो कभी धीर निर्भय स्वरूप से,मुझको विस्मित कर जाती है॥
बनकर जीवन में बयार आई थी,
पर आज बन गई मेरी श्वांस है॥
क्या नयी ये .....